श्रीमद्भगवद्गीता गीता प्रेस गोरखपुर pdf
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श्रीमद्भागवत गीता का विश्व साहित्य में अद्वितिय स्थान है, यह साक्षात भगवान के श्रीमुख से निःसृत परम् रहस्यमयी दिव्य वाणी है। इसमें स्वयं भगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए उपदेश दिया है, इस छोटे से ग्रंथ में भगवान ने अपने हृदय के बहुत ही विलक्षण भाव भर दिए है, जिनका आजतक कोई पार नही पा सका और न पा ही सकता है।
भगवान अनंत है, उनका सब कुछ अनंत है, फिर उनके मुखारविंद से निकली हुई गीता के भावों का अंत आ ही सकता है ? गीता उपनिषदों का सार है, पर वास्तव में गीता की बात उपनिषदों से भी विशेष है।
● [PDF] : भगवद गीता १८ अध्याय इन
हिंदी पीडीएफ. श्रीमद भगवद (भगवदगीता) गीता
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प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि मैं सदा जीता रहूँ, कभी मरूँ नही;मैं सब कुछ जान जाऊँ, अभी अज्ञानी न रहूँ, मैं सदा सुखी रहूँ, कभी दुःखी न रहूँ। परन्तु मनुष्य की यह चाहना अपने बल से अथवा संसार से कभी पूरा नही हो सकती, क्योकि मनुष्य जो चाहता है, वह संसार के पास है ही नही।
वास्तव में मनुष्य को जो चाहिए, वह उसको पहले से ही प्राप्त है, उसमे गलती यह होती है कि वह उन वस्तुओं को चाहने लगता है, जिनका संयोग और वियोग होता है, और जो मिलने और बिछुड़ने वाली है, यह सिद्धांत है कि जो वस्तु कभी भी हरे से अलग होती है, वह सदा ही हमारे से अलग हैं और अभी भी हमारे से अलग है।
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इसी तरह जो वस्तु कभी भी हमारे से अलग नही होती, वह सदा ही मिली हुई है और अभी भी हमारे को मिली हुई है,
तात्पर्य यह निकला की वास्तव में संसार का सदा ही वियोग है और परमात्मा का सदा ही योग है।
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